अनुशासन (व्यंग्य)

 

एक अध्यापक था। वह सरकारी नौकरी में था ।मास्टर की पत्नी बीमार थी । अस्पताल में थी। तभी उसके तबादले का ऑर्डर हो गया। शिक्षा विभाग के बड़े साहब उसी मुहल्ले में रहते थे। उसका बंगला मास्टर के घर से दिखता था। वह उनजे बंगले के सामने से निकलता तो उन्हें सादर ' नमस्ते' कर लेता। मास्टर ने सोचा, साहब से कहूँ तो वे फिलहाल मेरा तबादला रोक देंगे

वह साहब के घर गया । बरामदे में बड़े साहब ने पूछा - क्यों ? क्या बात है ?
- साहब एक प्राथना है।
- बोलो
- मेरी पत्नी अस्पताल में भर्ती है। वह बहुत बीमार है।
- तो ?
- मेरा तबादले का ऑर्डर हो गया है।
- तो ?
- सर, कृपा कर फिलहाल मेरा तबादला कैंसिल कर दे।

साहब नाराज हो हुए। बोले - तुम्हे अनुशासन के नियम मालूम हैं ? तुम सीधे मुझसे मिलने क्यों आ गए ? तुम्हे आवेदन करना चाहिए थ्रू प्रॉपर चैनल । तुम्हे अपने हैडमास्टर की लिखित अनुमति के साथ मुझसे मिलना चाहिए। जाओ, तबादला कैंसिल नहीं होगा। तुम्हें अनुशासन भंग करने के लिये डाँट भी पड़ेगी।
मास्टर को डाँट पड़ी। आइंदा साहब से सीधे नहीं मिलने की चेतावनी मिली। मास्टर ने दो महीने की छुट्टी ले ली।
एक शाम साहब के घर में आग लग गयी। आसपास के लोग आग बुझा रहे थे।
मास्टर बरामदे में खड़े हुए देख रहे थे। आग बुझ गयी। अधिक नुकसान नहीं हुआ।
दूसरे दिन मास्टर साहब निकले तो साहब फाटक पर खड़े थे। साहब में कहा - मास्टर साहब, कल शाम को मेरे घर में आग लगी थू तो तुम खड़े खड़े देखते रहे। बुझाने नहीं आये।

मास्टर ने नम्रता से कहा - सर, मैं मजबूर था। हेडमास्टर साहब बाहर गए हैं। उनकी लिखित अनुमति के बिना कैसे आता ? आपकी आग बुझाने के लिये थ्रू प्रॉपर चेनल आना चाहिए !

हरिशंकर परसाई

Comments

Golwalkar Mission of Hindu Rashtra

The Tara Sara Upanishad (The Supreme Goddess and Her Cosmic Essence)

The Muktika Upanishad (Exploring the Path to Liberation)